Author name: Geet Govind Sahu

परम् भाग्योदय

“परम् भाग्योदय” किसी महापुरुष व संस्था का मिलना आश्रय,यथार्थ में है यह एक संयोग, परम् भाग्योदय। योग है जैसे योगी गोविन्द से गउ-गोपी का,वेणु से वेणुधर गोपाल भगवान श्रीकृष्ण का। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम से धनुष का,मानो भुजंग से नीलकंठ शम्भू शिव का। नन्हे मूषक से गहन गजानन गणपति का,वीणा से जैसे हंसवाहिनी माँ सरस्वती का। […]

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“योग आरोहण”

“योग आरोहण” दिन-रात, सुख-दुख,धूप-छाँव, ऊंच-नीच,ठण्ड-गर्म, कठोर-नर्म,घर-बाहर, द्वन्द बीच। दो धारों के प्रवाह में लड़खड़ाती।हानि-लाभ, छोड़-पाने, फड़फड़ाती। काठ की ही पतवार द्वारा चलती,मल्लाह के हाथों, पर उछलती।न कुछ खाती, न पीती कुछ भी,नहीं बोलती कुछ, नाव काठ की। अनेक थपेड़ो को सहती, लहरों से लड़ती,होकर स्थिर, किन्तु तब भी गणतव्य पाती। बवंडर के भवरों को भी

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सर्वोत्तम नियम

“सर्वोत्तम नियम” आवश्यक नहीं कि सब कुछ नियम से हो!सब कुछ सम्मत संविधानयुक्त नियत हो! है निर्धारित विधाता द्वारा सर्वस्व सबही,चिंतायें हमारी बहुधा होती हैं कोरी व्यर्थ ही! है हर दिवस नूतन, प्रत्येक अनुभव नवीन,नीति नियम निर्देश होते मात्र पाहन मील! व्यवस्था की व्यथा से होते क्यों तुम दीन,दीनदयाल की सेवा से युक्ति जाएगी मिल।

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हो जा भक्त योगी सुजान!

“हो जा भक्त योगी सुजान!”तस्माद्योगी भवार्जुन-6.46 रहता लिप्त मन सदा हीहर क्षण कहीं न कहींचाहकर और न चाहकरस्वतः या कभी बलात भी कर तू अपनी पहचानमन कहता क्या है तेरासोच समझ कर जानहो जा भक्त योगी सुजान भटकता क्यूँ? अटकता क्यूँ?जैसे हो पगडंडी बियाबानफंसता क्यूँ? उलझता क्यूँ?जैसे कोई बालक नादान खेल है सब, तीन गुणों

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शब्द संगीत – 2

कोई आधा, कोई पूरा, तो कोई है दीर्घ,कोई ऊपर अटके, तो नीचे लटके एक अधीर। किसी ने पाली पूर्णता समग्र सारी,रह गया कोई रिक्त आधा अधूरा भी। किसी पर पड़ा एक डंडा जोर का,तो बेचारा कोई डंडे दो गया खा। खिलती सुन्दर एक चोटी एक पर,एक इठलाती बड़ी, दो लगा कर। कभी आ जाता बीच

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जय जय मारुति

महिमा तेरी अतुल अगम अपारातुमसा ही विशाल है संकल्प हमारानवायें शीश तव चरणों में आजअपने शरणागत की रखना लाज (चौपाई 1) शत नहीं सहस्त्र कोटि पुष्प चढ़ेंप्रभु श्रीराम जी का मंदिर दिव्य बनेरामराज सुख फिर लौट कर आवेजनमानस मगन सौहाद्र से गाएं (चौपाई 2) सकल साधु सज्जन अति आनंदितप्रभा माधुर्य भक्ति शक्ति की मुदितमिलकर करते

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