“हो जा भक्त योगी सुजान!”
तस्माद्योगी भवार्जुन-6.46
रहता लिप्त मन सदा ही
हर क्षण कहीं न कहीं
चाहकर और न चाहकर
स्वतः या कभी बलात भी
कर तू अपनी पहचान
मन कहता क्या है तेरा
सोच समझ कर जान
हो जा भक्त योगी सुजान
भटकता क्यूँ? अटकता क्यूँ?
जैसे हो पगडंडी बियाबान
फंसता क्यूँ? उलझता क्यूँ?
जैसे कोई बालक नादान
खेल है सब, तीन गुणों का
विभाजन चार श्रेणियों का
उलझनें वही सदियां पुरानी
प्रकृति अष्टधा की कहानी
आवश्यकता है केवल एक
श्रीगुरूजी चरण माथा टेक
पूर्ण समर्पित शरणागति,
एकनिष्ठ, विश्वास, प्रेमभक्ति
कर तू अपनी पहचान
मन कहता क्या है तेरा
सोच समझ कर जान
हो जा भक्त योगी सुजान!