सर्वोत्तम नियम

“सर्वोत्तम नियम”

आवश्यक नहीं कि सब कुछ नियम से हो!
सब कुछ सम्मत संविधानयुक्त नियत हो!

है निर्धारित विधाता द्वारा सर्वस्व सबही,
चिंतायें हमारी बहुधा होती हैं कोरी व्यर्थ ही!

है हर दिवस नूतन, प्रत्येक अनुभव नवीन,
नीति नियम निर्देश होते मात्र पाहन मील!

व्यवस्था की व्यथा से होते क्यों तुम दीन,
दीनदयाल की सेवा से युक्ति जाएगी मिल।

व्यवस्था बनाने की होड़ में बड़ी अव्यवस्था
करना मन व्यवस्थित ही सबसे बड़ी व्यवस्था

खोज लो तुम युक्ति खोलो मन के किवाड़,
कुंजी बिन निर्मित नहीं कोई ताला न द्वार!

दोष तो होते कुछ थोड़े अग्नि में धुआ जैसे!
अशुद्धि बिन आभूषण स्वर्ण से बनता कैसे?

होकर सरल सहज बुलबुल बनकर चहक,
आत्मज्ञान प्रकाश से पारिजात सा महक!

बहता जा भक्तिधार में जैसे बहती विरल नदी,
झूम जा तरुवर सा, लहलहा मानो फसल रबी!

छोड़ बंधन सब सारे त्याग व्यर्थ मोह मान्यता,
हे प्रिय पार्थ ! उठो जगाओ अपनी आत्म चेतना।

वैरागी मन, निष्काम कर्म और हरि शरण!
है एकमात्र यही सर्वोपरि सर्वोत्तम नियम।

निर्लिंप्त मन से करो सेवा पूजन आराधना,
हे सव्यसाची! होगी सहज जीवन साधना।

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