एक समय की बात है, जब भगवान हनुमान जी लंका के राजा रावण के दरबार में पहुंचे। वहां उन्हें रावण के पुत्र मेघनाथ की दृष्टि पड़ी। मेघनाथ एक अद्भुत शक्तिशाली राक्षस था और उसकी रक्षा करना कठिन था।
हनुमान जी ने देखा कि मेघनाथ अपनी बड़ी भुजा उठा रहा था और उसकी आंखों में एक भयंकर तेज़ थी। लोग डर के मारे उनके आस-पास घूम रहे थे। हनुमान जी को भी उसकी शक्ति का अहसास हो रहा था, लेकिन वे इसे नहीं दिखा रहे थे।
रावण ने हनुमान जी से पूछा, ‘हे वानर, तुम मेरे बेटे मेघनाथ को मार सकते हो?’ हनुमान जी ने धीरे से उत्तर दिया, ‘हां, मैं उसे मार सकता हूँ।’
रावण ने चुनौती दी, ‘अच्छा, तो फिर उसे अपनी बड़ी भुजा से पकड़कर मार दो।’ हनुमान जी ने मुस्कान देते हुए कहा, ‘राजा महाराजा, उसे मारने के लिए मेरे दो बांहों की ज़रूरत नहीं होगी। मैं उसे अपने एक हाथ से ही मार सकता हूँ।’
रावण और सभी लोग चकित रह गए। वे सभी यह सोचने लगे कि हनुमान जी कैसे इतनी बड़ी शक्ति रखते हैं। अगले ही पल, हनुमान जी ने मेघनाथ को अपने एक हाथ से पकड़ लिया और उसे मारने के लिए उसे लहराया।
रावण और उसके सभी अनुयाय चौंक गए। वे सभी विस्मित हो गए कि हनुमान जी कैसे इतनी शक्तिशाली हैं। हालांकि, हनुमान जी ने मेघनाथ को मारने की जगह उसे लंका के दरबार में ले जाकर उसे उनकी शक्ति का अहसास कराया।
हनुमान जी ने कहा, ‘मेघनाथ, तुम शक्तिशाली हो, लेकिन अपनी शक्ति का गर्व न करो। शक्ति का सही उपयोग करना जरूरी है। तुम अगर अपनी शक्ति का गलत इस्तेमाल करोगे, तो यह तुम्हारे लिए खतरनाक हो सकता है।’
मेघनाथ ने इस सीख को समझा और अपनी शक्ति का सही उपयोग करने का निर्णय लिया। वह अपनी शक्ति को उचित तरीके से इस्तेमाल करने लगा और लंका की रक्षा में अहम योगदान देने लगा।
इस कथा से हमें यह सीख मिलती है कि हमें अपनी शक्ति का सही उपयोग करना चाहिए। हमारी शक्ति हमारी गरिमा होती है, लेकिन हमें इसे गलत इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। जब हम अपनी शक्ति को सही तरीके से इस्तेमाल करते हैं, तो हम खुद को और अन्यों को भी सशक्त बना सकते हैं।